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Tag Archives: काव्य
हर दिन – होली हैं
प्रकृति के रंग अनेक इंसानों के ढंग अनेक सुख दुःख की होती यहाँ आँख मिचौली हैं जीवन के रंग मंच पर तो भाई, हर दिन – “होली हैं”
ये दिल
हर गम भूल जाने को कहता है ये दिल, अब जख्म न सहने को कहता है ये दिल, टूट चूका ये जितना टूटना था- अब न ये टूट पायेगा, अब तो बिखरे टुकडो पे भी, रोने को न कहता है … Continue reading