ये सूनापन ,ये उदासी का आलम ,
हम क्या सुनाये किसीको अपना गम,
हालतों के मारे तड़पते यहाँ हम,
ये तन्हाई ही है अब मेरी हमदम ..
बहे जब अश्क इन आँखों से हमारी ,
ए खुदा! तुम तड़पते नहीं क्यों?
जब भी बोला ये दिल सिसक सिसक कर,
तुम इसकी आवाज़ सुनते नहीं क्यों?
जब तुम ही ना सुनो तो किससे कहे हम?
ये तन्हाई ही है अब मेरी हमदम ..
ये रिश्ते, ये नाते, ये रस्मो -रिवाज़,
दिल से इसे सब निभाते नहीं क्यों ?
चले आते है लोग यहाँ अपना बनकर ,
पर अपनापन ये दिखाते नहीं क्यों?
गया उठ भरोसा, थके, हारे अब हम,
ये तन्हाई ही है अब मेरी हमदम ..
ये आंसू ,ये आहे, ये खामोशियाँ है ,
कभी लगता है की अब क्यों जियें हम ?
यही होता आया, यही होगा ‘शबनम’
ये तन्हाई ही है अब मेरी हमदम ..
मैं और मेरी तन्हाई….! very good!!!
thank u..
Only thing i can think is.. Very real n Superbbbbbbb.. 🙂
thank u so much dear… 🙂
तन्हाई.. दिल के रस्ते में कैसी ठोकर मैंने खाई, टूटे ख्वाब सारे, एक मायूसी है छाई, हर खुशी सो गई, जिंदगी खो गई.. तन्हाई.. 😉