(लोकतंत्र का ‘अमृत-मंथन’ और ‘नीलकंठ’ अन्ना)
●अन्ना के आंदोलन ने देश में एक भूचाल सा ला दिया है, देश में एक नयी लहर और नव- चेतना का संचार हुआ है. बरसों की निकम्मी व्यवस्था को उखाड फेंकने के लिए देशवासी सुसज्ज हो गए हैं. यह एक अच्छी शुरूवात है. और सबसे बड़ी बात है की लोग इस देश को ‘अपना देश’ मानने लगे है! अपने घर में फैली हुई ‘गन्दगी’ को हमें ही साफ़ करना पड़ेगा, हम खुद करेंगे तो ‘सफाई’ और भी ‘दिल-से’ और ‘अच्छी’ होगी, दूसरे के भरोसे रहेंगे तो ‘संतुष्टि’ नहीं मिलेगी.
●७४ वर्ष के अन्ना के साथ जब पूरा देश खड़ा है, तब , नयी पीढ़ी – हमारे युवाओं का इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना देश को एक नयी दिशा प्रदान करता है और आने वाले दिनों हमारे सांस्कृतिक,सामाजिक, और सार्वजनिक जीवन में एक ‘परिवर्तन’ का संकेत भी देता है. असल में यह एक लंबे संघर्ष की शुरुवात भर है. अभी और बहोत समस्याएं हैं जिनका समाधान होना बाकी है.
●ताज्जुब की बात है कि ‘कांग्रेस’ जैसी सबसे ‘पूरानी’ पार्टी ‘जन-लोकपाल’ के इस मुद्दे को समर्थन देने में पीछे क्यों रह गयी या हिचकिचाहट किस चीज़ की और क्यों है. मैं तो कहता हूँ कि मनमोहन सिंह जैसे हमारे सम्माननीय प्रधानमंत्री को ही सबसे पहले इस ‘जन-लोकपाल बिल’ का समर्थन करना चाहिए और अन्ना के साथ अनशन पर बैठकर इसे लागू करना चाहिए. मैं प्रधानमंत्री जी का आह्वान करता हूँ कि अपनी ‘अंतरात्मा’ आवाज़ को सुने और देश के हित में इस ‘जन-लोकपाल बिल’ को लाकर एक नया इतिहास बनाये.
दलीय राजनीती से ऊपर उठ कर सभी सांसदों से भी अनुरोध हैं कि वे अन्ना कि लड़ाई में शामिल होकर अपना योगदान दें. और जो शामिल नहीं होते हैं ऐसे सांसद, विधायक या नेता को जनता कृपया अगले चुनाव में चुनकर नहीं लाएं, अन्यथा यह देश के साथ बहोत बड़ी ‘गद्दारी’ होगी और ‘शहीदों’ की आत्मा हमें कभी माफ नहीं करेगी.
●वैसे वर्तमान स्थिति में कई राजनीतिक पार्टियां चाहती तो अपने आपको सच्ची ‘राष्ट्रवादी’ पार्टी और जनता कि ‘सही नुमाइंदगी’ करने वाली पार्टी के रूप में अपने आपको स्थापित कर सकती थी पर उनमे ऐसी इच्छाशक्ति जागृत हो नहीं पायी. और तो और ‘भाजपा’ जैसी ‘राष्ट्रवादी’ पार्टी भी स्तिथियों का सही आकलन कर- पार्टी लाइन से ऊपर उठकर ‘भ्रष्टाचार’ को एक समग्र ‘राष्ट्रहित’ का मुद्दा बनाकर,भ्रष्टाचार विरोधी इस आंदोलन को एक प्रभावशाली नेतृत्व दे सकती थी. देश में ‘संपूर्ण क्रांति’ एवं ‘नव-निर्माण’ का वातावरण तैयार कर सकती थी. पर ऐसा नहीं कर ‘भाजपा’ ने अपने को ‘कांग्रेस’ के विकल्प के रूप में स्थापित करने का मौका भी खो दिया हैं.
●एक दो दिन पहले हमारे प्रधानमंत्रीजी ने कहा था कि लोगों को जो भी कहना है वो अपने सांसदों के मार्फ़त ही कहें, क्या हमारे प्रधानमंत्री ज़मीनी हकीकत से इतने दूर है कि, यह भी नहीं जानते कि एक बार चुनाव जीतने के बाद सांसद अपने मतदार क्षेत्र भी नहीं जाते ,लोगों से मिलना तो बहोत दूर कि बात है. वे केवल अपने चेले-चपाटों और चमचों के साथ घिरे रहते हैं और ‘भ्रष्टाचार’ के नए नए तरीके खोजने में लगे रहते हैं. ‘आम आदमी’ या उसकी समस्याओंसे ‘सांसदों’ को कोई लेना-देना नहीं रहता. अगर सांसद अपने क्षेत्र एवं अपने लोगों की सुध लेते तो आज यह नौबत ही नहीं आती.
●कई लोगों ने अन्ना के आंदोलन का विरोध करने के बहाने ‘संसद की गरिमा’ एवं ‘संसदीय व्यवस्था’ की दुहाई दी. जिस संसद में ५४३ में से १८२ सांसद ‘दागी’ हो उस संसद की भी कोई ‘गरिमा’ है क्या?, जिन पर लूट, बलात्कार,हत्या,अपहरण,यौन शोषण जैसे अपराध दर्ज हो या इस तरह कि साजिश में शामिल होने वाले लोग संसद में हो तो संसद कि पवित्रता कैसी? कुछ लोग अपने आपको ‘बाहुबली’ या ‘दबंग’ सांसद या ‘विधायक’ कहलाने में फक्र महसूस करते हो और जिन पर ‘संगीन’ से ‘संगीन’ आरोप लग रहे हो, तो यह कैसी ‘संसदीय व्यवस्था’.
१२० करोड जनता को धत्ता बताकर पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के दिग्विजय सिंह,अभिषेक मनु सिंघवी,प्रणब मुख़र्जी,पवन बंसल,सलमान खुर्शीद,कपिल…’कुटिल’ सिब्बल,चिदंबरम, अम्बिका सोनी तथा अन्य ने जो वैचारिक दिवालिएपन का उदहारण दिया है वह घृणास्पद हैं. साथ ही राजनीती के गिरते स्तर का द्योतक तो है ही.
●सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्ना के स्वास्थ्य की जिम्मेवारी किसकी है, उनके दिन-ब-दिन बिगड़ते स्वास्थ्य से अगर उनको कोई खतरा उत्पन्न होता है, तो इसकी सीधी जिम्मेवारी हमारे देश के प्रधानमंत्री एवं ५४३ सांसदों की होगी, जिन्होंने स्थिति को इस हद तक बिगड़ने दिया. हमारे देश को अन्ना जैसे महापुरुष कि सख्त जरुरत हैं और उनके स्वास्थ्य को इस हद तक खराब करने के लिए सीधे तौर पर सरकार और विपक्ष दोनों का ही हाथ है या साजिश भी हो सकती है. क्योंकि हमारे राजनीतिज्ञ खुद का स्वार्थ छोड़ और किसी के प्रति संवदेनशील कभी रहे ही नहीं.(कुछ विरले ही अपवाद हो सकते हैं).
सत्ता का नशा कुछ इस कदर हावी हैं हमारे राजनेताओं पे कि इस देश को इन्होने अपने व्यक्तिगत ‘जागीर’ समझ रखा हैं और जनता को अपनी पैरों कि जूती. अब वक्त आ गया है कि जनता इस नाकारा व्यवस्था को ‘पटखनी’ दे और अपने खुद के चुने हुए प्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाये और हर चीज़ का जवाब मांगे. आओ हम सब एक स्वस्थ ‘लोकतंत्र‘ कि स्थापना के लिए हमारा योगदान दें.
हमारे लोकतंत्र के इतिहास में यह ‘अमृत-मंथन’ का क्षण हैं, इसमें से क्या बहार आएगा और किसे क्या मिलेगा यह तो वक्त ही बताएगा. इसमें असली ‘देवता ‘ कौन और ‘दानव’ कौन यह पहचानना भी मुश्किल है क्योंकि कुछ परदे के भीतर हैं कुछ बाहर हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हैं की ‘विष’ प्राशन करनेवाला ‘नीलकंठ’ हमें ‘अन्ना’ के रूप में मिल गया हैं. और जरुरत इसी की हैं. क्योंकि हम में से कई बहोत कुछ चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते. फिर इतनी हिम्मत, इतना हौंसला, इतना संयम… यह सब कौन करेगा, इसीलिए हर वक्त में या कालखंड में हमें एक ‘हीरो’ की तलाश रहती हैं, जिसके पीछे हम चल सके!
और इश्वर भी अपना वचन पूरा करने और पापियों का नाश करने किसी भी रूप में अवतार ले लेते हैं. शायद इसीलिए कहते हैं की हमारा देश किसी दैवीय शक्ति के भरोसे चल रहा हैं.
આ બ્લોગમાં શોધો:
ઈ-મેઈલમાં બ્લોગ:
સંસ્મરણો:
-
લેખકો:
વિભાગો:
-
તાજેતરની રચનાઓ
આપના અમુલ્ય અભિપ્રાય
- Chetna Bhatt: Thank you All for your Love♥️
- priyesh kaneria: WAH….. NICE WROTE
- dave amita: માનવમનને સ્પર્શતી વાત કેટલી સુંદર રીતે કહેવાઈ છે. સરસ !
- HARI: શિક્ષક એ શિક્ષક
- Surangi Mehta: Super duper
- PRIYESH C KANERIA: mast……
- PRIYESH C KANERIA: THANK YOU SIR,
- Ankesh Nimavat: Beautiful….
- vivek: Your post is superb sister
- vivek: કોણ કહે છે હું પોતાના માટે જીવુ છું અે તો હું લોકોના રમવા માટે બન્યો...
Meta
Counter
ફેસબુક પર લાઈક કરો:
-
Mastodon
ઓનલાઈન કોણ છે?
1 User Browsing This Page.
Users: 1 Bot
Congrats to team anna n us.. but as anna says it’s not over yet.. We all need to do all the efforts from our side to make the country better..
Truly said Sir n Nirali..