मेरे प्यारे दोस्तों,
आज २३ मार्च, अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आज ही के दिन सन १९३१ में फांसी चढ़ाया गया था! और हँसते हँसते देश के लिए शहीद हुए थे भारत माता के यह तीन सपूत.
देश के इन अमर शहीदों को आज हम याद कर उन्हें नमन करते हैं और ‘नई –आश’ के सभी सदस्यों की ओर से उन्हें शत शत नमन..
आज जो हमारे देश की हालत हैं उसे देख के इन शहीदों की आत्माओंको जरूर ठेस पहूँचती होगी. चारो तरफ फैली अराजकता और हर क्षेत्र में फैले भ्रष्ट्राचार को देखकर वे जरूर दुखी होते.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश को आज़ाद करने के लिए इन लोगों ने किन किन मुसीबतों का सामना किया एवं क्या क्या यातनाएं सहन की. चाहते तो वोह भी आसान रह चुन सकते थे,सोचो कि वह क्या कर सकते थे ; अंग्रेजो से माफ़ी मांगकर आराम कि जिंदगी बसर कर सकते थे,
उन्हें भी हक था शादी कर अपना घर बसाने का, माँ-बाप-भाई-बहन सभी तो थे – एक खुशहाल जीवन बिताने के लिए, देश स्वतंत्र होने के बाद बड़ी राजनितिक हस्ती भी बन सकते थें,स्वतंत्रता संग्राम में अपने कार्यों की बार बार दुहाई देकर राजनितिक कार्यों में हस्तक्षेप कर अपनी मन मानी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने मुश्किल राह चुनी और अपने कर्तव्य को अंजाम दिया.
अब सोचो हमने क्या किया एवं क्या कर रहे हैं; जगह जगह इन महान शहीदों की मूर्तियां स्थापित कर फिर उन्हें दुर्लक्षित कर दिया, मूर्तियों के साथ साथ दफना दिया उनके आदर्शों को और भूल गए उनके महान बलिदान को भी. उनके विचार, उनके उद्देश्य उनकी कार्यनिष्ठा एवं कर्तव्यनिष्ठा इन सभी को तिलांजलि देकर हम धन्य हो गए. आज देश में पल रहे भ्रष्ट नेतओंको पदच्युत करने के लिए और राष्ट्र हित में कोई अच्छा कार्य करने के लिए सहमति बनाने में भी हम असमर्थ हो जाते हैं, क्यों ?, क्योंकि अपना हित सर्वोपरि हो गया है , और राष्ट्र तो राम भरोसे चल ही रहा है…..
फिर भी.. जब तक इस राष्ट्र में आप जैसे भरत मौजूद है तब तक राम को कोई चिंता नहीं..
बहोत खूब लिखा है..
मेरे दिल में ना सही तेरे दिल में ही सही इक आग जलनी चाहिए …….
बहोत अच्छेअविनाश भाई
बहोत से सवाल हे जो सोचने पर मजबूर करते है
क्या देशभक्ति खेल के मैदानों तक ही सिमित हे ?
क्या तिरंगे को याद करने के लिए
२६ जनवरी और १५ अगस्त यही दो दिन
बहोत हे ?
देश को बहार के दुश्मनों से तो इतना खतरा नहीं
क्युकी सरहद पर हमारे जवान चोकन्ने खड़े हे
पर देश के अन्दर के यह दुश्मन जो देश को दीमक की तरह
चाट रहे हे उनका क्या ?
अगर आज़ादी के मायने यही रहे जायेंगे
ये उन शहीदों को पता होता तो शायद यह मुस्किल रह वोह चुनते भी ?……….
एक शेर हे जिसकी पहेली पंक्ति मुझे बहोत याद आ रही हे ….